Champai Soren News: चंपाई सोरेन ने कर दिया साफ, बताया क्‍यों लेना पड़ा ऐसा फैसला, आगे का प्‍लान भी बताया


झारखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में जाने की खबरों के बीच बड़ा बयान आया है. चंपाई सोरेन ने सोशल मीडिया पर अपने समर्थकों के ल‍िए एक पोस्‍ट शेयर की, जिसमें साफ कर दिया क‍ि उनका अगला प्‍लान क्‍या होने वाला है. ये भी बताया क‍ि आख‍िर उन्‍हें ऐसा फैसला क्‍यों लेना पड़ा. इतना ही नहीं, संकेतों में उन्‍होंने झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन को भी जवाब दिया है.

चंपाई सोरेन ने लिख, आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे. आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया. अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है. राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं. किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे.

चंपाई ने वो वजह बताई क‍ि क्‍यों उन्‍हें ये फैसला लेना पड़ा. उन्‍होंने कहा, मैं झारखंड के ल‍िए कुछ अच्‍छा करना चाहता था. इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना. अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया. इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा. बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी.

चंपाई सोरेन ने लिखा, जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था. झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया. इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है. इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था. पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते.

चंपाई सोरेन ने पूछा, क्या लोकतंत्र में इससे अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे? अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा। लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया. पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा. सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया. लेकिन उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं.

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