एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध मोरेल हुआ लबालब, खौफ में आए आसपास के गांव


दौसा. दौसा और सवाई माधोपुर जिले के लिए अच्छी खबर है. दोनों जिलों में हो रही भारी बारिश से एशिया का सबसे बड़ा कच्चा मोरेल बांध लबालब हो चुका है. उस पर 6 इंच की चादर चल रही है. मोरेल बांध पर चादर चलने लगी तो आसपास के लोग वहां पिकनिक मनाने के लिए पहुंचने लग गए हैं. वहीं प्रशासन इसको लेकर पूरी तरह अलर्ट मोड पर आ गया है. वहां किसी भी तरह का कोई हादसा ना हो जाए इसके लिए सतर्कता बरतते हुए पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया है. खुद लालसोट एसडीएम नरेंद्र मीणा बुधवार को वहां पहुंचे और हालात का जायजा लिया.

किसी भी व्यक्ति को ओवरफ्लो बांध के नजदीक जाने नहीं दिया जा रहा है. इसके साथ ही बांध के आसपास वाहनों की आवाजाही पर भी पाबंदी लगा दी गई है. केवल पैदल व्यक्ति ही बांध के आसपास आकर अपनी बांध की खूबसूरती निहार सकता है. लेकिन ओवरफ्लो के समीप जाकर नहाने या फिर मस्ती करने की अनुमति किसी को नहीं दी गई है. लालसोट एसडीएम नरेंद्र मीणा ने बताया कि यह बांध 4 किलोमीटर के क्षेत्र में बांध फैला हुआ है. यह पूरी तरह मिट्टी का बांध है. इस बांध में बुधवार को रिसाव की सूचना भी मिली थी लेकिन उसे रिपेयर कर दिया गया है. बांध के आसपास अतिरिक्त मिट्टी भी डलवा दी गई है. इसके साथ ही लोगों से भी समझाइश की जा रही है कि वे ओवरफ्लो की जगह पर नहीं जाएं और सावधानी बरतें. यह एशिया के सभी देशों के कच्चे बांधों में से सबसे बड़ा बांध है.

मोरेल बांध से पानी नहरों में जाता है
मोरेल बांध से सवाई माधोपुर और दौसा के लालसोट क्षेत्र के किसानों को नहर के माध्यम से सिंचाई के लिए पानी मिलता है. इस बांध से सैकड़ों की संख्या में किसान लाभान्वित होते हैं. मोरेल बांध से पानी नहरों में जाता है. मोरेल बांध में दो नहरें हैं. मुख्य नहर और पूर्वी नहर. मुख्य नहर और उसकी माइनर नहरों की लंबाई 105.45 किलोमीटर है. इसमें मुख्य नहर की लंबाई 28.60 किलोमीटर है. मुख्य नहर में 19 माइनर नहरें हैं. उनकी लंबाई 76.85 किलोमीटर है. इसका कुल सिंचित क्षेत्र (सीसीए) 12 हजार 964 हैक्टेयर भूमि है. इससे बौंली और मलारना डूंगर के 55 गांवों को पानी मिलता है.

पूर्वी नहर 6 फीट की ऊंचाई पर बनी हुई है
इसी प्रकार पूर्वी नहर 6 फीट की ऊंचाई पर बनी हुई है. पूर्वी मुख्य नहर और उसकी माइनर नहरों की लंबाई 53.32 किलोमीटर है. इसमें मुख्य नहर की लंबाई 31.79 लंबी है. इसमें 10 माइनर नहरें हैं. उनकी लंबाई 21.53 किलोमीटर है. इस नहर का सिंचित क्षेत्र 6 हजार 705 हैक्टेयर भूमि है. इससे 28 गांवों को पानी मिलता है. मोरेल बांध से दौसा जिले के लालसोट के 13 को गांव पानी मिला है. जबकि सवाई माधोपुर के बामनवास तहसील के 15 गांव इससे लाभान्वित होते हैं. पूर्वी नहर का नियंत्रण जल संसाधन विभाग के दौसा अधिशासी अभियंता के पास है. जबकि मुख्य नहर का नियंत्रण सवाईमाधोपुर अधिशासी अभियंता के पास है.

1952 में बना था मोरेल बांध
मोरेल बांध को 1952 में बनाया गया था. यह दौसा जिले के लालसोट के गांव कांकरिया के पास मोरेल नदी पर स्थित है. यह लालसोट कस्बे से 17 किलोमीटर दूर दौसा-सवाईमाधोपुर सड़क मार्ग पर बना हुआ है. मोरेल नदी बनास नदी की सहायक नदी है. मोरेल नदी मलारना डूंगर रेलवे स्टेशन के समीप बनास नदी में मिलती है. बांध की लंबाई 5 हजार 364 मीटर है. इसकी कुल भराव क्षमता 30 फीट है. बांध की भराव क्षमता 2707 एमसी फीट है. इसमें 2496 एमसीफीट लाइव और 211 एमसी फीट डेड स्टोरेज है.

1984 में यह बांध बाढ़ में टूट गया था
इस बांध का पेटा तो दौसा जिले में हैं, लेकिन इसके पानी से सवाईमाधोपुर के 70 गांवों को फायदा होता है. इसका पानी सिंचाई के लिए ही खोला जाता है. यह 5 साल बाद दूसरी बार छलका है. इससे पहले बांध में 2019 में चादर चली थी. 2014 में इसमें 26 फीट से अधिक पानी भर गया था. जबकि 1984 में यह बांध बाढ़ में टूट गया था. उस दौरान कई गांवों में पानी घुस गया था. ऐसे में इस बार फिर से बांध पूरा भरने से आसपास के गांवों में दहशत का माहौल है.

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